कौन हूँ क्या ये जानती हूँ मैं ,
शायद खुद ही को नहीं पहचानती हूँ मै !
कौन हूँ ...
मात-पिता से नाम मिला है ,
खान-पान-आराम मिला है,
समाज में स्थान मिला है,
किन्तु सोच रही हूँ मैं
क्या खुद की है पहचान कहीं पर?
लेकर यही प्रश्न हृदय में,
अपनी राह बनाती हूँ मैं ,
कौन हूँ क्या ......
मेरी भी एक राह अलग हो,
जग में मेरा स्थान अलग पर
क्या खुद को परिचय जानती हूँ मैं ,
कौन हूँ क्या ..................
देख के सब कयास लगाते
मेरा आईना मुझे दिखाते ,
मुझे बदलने को तत्पर सब ,
अपनी -अपनी राह बताते
क्यूँ वे मुझे राह दर्शाते ,
भ्रमित होते राहों से !
क्या खुद की राह जानते हैं वे ?
पर अंतर्मयी राह बनाती,
लक्ष्य सिमरती पग बढाती,
यात्रा का आनंद उठाती हूँ मैं ,
हाँ अब खुद को पहचानती हूँ मैं !